गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

तेरे गाँव में

कविता तेरे गाँव में 

 ठंडी ठंडी छाँव में


 फिर कविताएं लिखना चाहता हूँ मैं

 सरसो के हरे भरे खेत में 

 झुककर जब साग तोडती थी तुम

 तुम्हारे उस सुन्दर दृश्य को 

 आज फिर देखना चाहता हूँ मैं 

 मई के गर्म महिने में

 करवे में भरा वो कुए का जल

 फिर ओक बनाकर पीना चाहता हूँ मैं

 कुलर एसी फेन से

 शहर के मॉर्डन मेन से

 मैं तो बिल्कुल ऊब गया कविता

 फिर तेरे गाँव मैं आकर 

नीम के निचे खाट बिछाकर 

मक्का की रोटी पर नुनी घी लगाकर 

फिर गुड छाछ से खाना चाहता हूँ मैं 

 मेरे भारत की भारतयता 

दिखती है केवल गाँव में 

 कविता की मांग में चमकता हे सिन्दूर 

और बजती हे पायल पाँव में 

 कविता तेरी पायल की उस छन छन को 

आज फिर सुनना चाहता हूँ मैं

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