कविता तेरे गाँव में
ठंडी ठंडी छाँव में
फिर कविताएं लिखना चाहता हूँ मैं
सरसो के हरे भरे खेत में
झुककर जब साग तोडती थी तुम
तुम्हारे उस सुन्दर दृश्य को
आज फिर देखना चाहता हूँ मैं
मई के गर्म महिने में
करवे में भरा वो कुए का जल
फिर ओक बनाकर पीना चाहता हूँ मैं
कुलर एसी फेन से
शहर के मॉर्डन मेन से
मैं तो बिल्कुल ऊब गया कविता
फिर तेरे गाँव मैं आकर
नीम के निचे खाट बिछाकर
मक्का की रोटी पर नुनी घी लगाकर
फिर गुड छाछ से खाना चाहता हूँ मैं
मेरे भारत की भारतयता
दिखती है केवल गाँव में
कविता की मांग में चमकता हे सिन्दूर
और बजती हे पायल पाँव में
कविता तेरी पायल की उस छन छन को
आज फिर सुनना चाहता हूँ मैं