शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

काश मै भी एक कबूतर होता

कितना अच्छा होता 
काश मै भी एक कबूतर होता 

न वीजा  न रेल का खर्चा होता 
मै यूँ ही देश -विदेश आता जाता 
काश मैं भी फुर से उड़ पाता 
काश मै भी  एक कबूतर होता 
मै अखण्डता,एकता का प्रेम पत्र 
कभी इस पार से उस पार ले जाता 
कभी उस पार से इस पार लाता 
काश मै भी एक कबूतर होता 

जब चहाता भारत आ जाता 
जब चहाता पाक चला जाता 
ये सरहद, सीमाएँ कहाँ रोक पाती  मुझें 
अगर मै एक कबूतर होता
hindi kavita
भाग-2 


काश    समाज में जात सम्प्रदाय न होता 
काश कोई हिन्दू कोई मुसलमान न होता 
फिर तो मेरा  समाज प्रेम पंख लगा कर 
शायद बहुत ऊँची उड़ान भर लेता 


फिर इन्सान के हाथो,  इन्सान का
 खून कभी न होता 
  इन्सान भी कबूतर जैसा आजाद स्वतंत्र हो जाता 
काश ये  इन्सान अपने मन का गुलाम न होता 
(समज में ये  जात,सम्प्रदाय न होता )

(काश ये जात,सम्प्रदाय न होता) 
हिंदुस्तान का न पाकिस्तान का होता 
फिर तो  मै भी सारे जहाँ का होता 
जैसे वो कबूतर……… 
मेरी छत की मुंडेर पर बैठकर मेरा हो जाता
और उनके आँगन में बैठकर उनका  सा हो जाता  
(काश मै भी एक कबूतर होता ) 
उँगा 
केवल कबूतर ही कहलाता है 
काश मै भी  इन्सान  से जन्मा 
केवल इन्सान ही कहलाता

इन्हे भी पढ़े। … 




कोई टिप्पणी नहीं: