सोमवार, 3 अगस्त 2015

मै बहुत दूर निकल जाऊँगा

अपना घर ये चमन  खोकर 
तुम्हारी आँखों में नमी देकर 
अब चलना ही पड़ेगा प्यारो 
तुम  सब  से   जुड़ा  होकर 

एक   यादो  का समां  देकर 
तुम्हारी होठो पे गजल देकर 
कुछ  गीत    यहाँ  गा  कर 

मेरा सपना था..कि मै जाऊँगा 
जन्नत को जमीं  पे  ला   कर 
मगर हो  गया हूँ  दफ़न देखो 
केवल शब्दों  की फसल बोकर 

न दौलत न पूँजी देकर 
न लवों पे  हँसी   देकर 
हर इंसान  गुजरता   हे 
सिर्फ आँखों में आंसू देकर 



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