मर गये प्रेम के सच्चे किस्से अब क्या जिन्दी कोई पहचान नही
इंसानो की भीड मे क्यौ अब दिखता कोई इन्सान नही
चूम गये जो फाँसी का फंदा जिन्होने झोक दिया जीवन सारा
अब वो लक्ष्मीबाई जेसी नार नही वो भगतसिंह जेसा प्यार नही
देख कितना बेरहमी से मारा उसको मगर दिल किसी का पसीजा ही नही
अब तमासा देखते हैं लोग खडे खडे मगर इन्सा के हक मे बोलता इन्सान नही
क्या आज युवा कायर है क्यौ इसके लहू में उठता उबाल नही
चाहे चौराहे पर लुट जाए अमन क्यौ भरता ये हुंकार नही
स्वाभिमानी का है मान यंहा पर कायर का कँही सम्मान नही
जिन्दगी होती हे रणभुमि जिन्दगी कोई आसान नहीं
कल फिर जन्मेंगे आजाद भगत मैं कभी करता इन्कार नहीं
पर आज के युवा तेरे कायर होने से ये मुल्क तेरा महफुज नही
रिस्ते टुट टुट कर हो गए खंडर क्यो एक दूजे पर एतबार नहीं
एकता अखण्डता से बनता है मुल्क पर एसी तो आज बहार नही