जरा इतिहास के पन्नों को ,तुम देखो तो खोलकर
वो हमें आजाद कर गए क्या-क्या जुल्म झेलकर
हमारी नस्ले रहे आबाद वो लड़े थे यही सोच कर
देश को मिली आजादी लहू उबालकर इंकलाब बोलकर
वो तो कुर्बानी दे गए सब भेदभाव भूलकर
और आप मोहब्बत भी करते हो मजहब जात देखकर
हंसते-हंसते जो सूली चढ़ गए, देश के वास्ते जो मर गए
वो क्या सोचते होंगे ,आज के भारत को देख कर
आपस में लड़ते हो, जाति मजहब पर अटके हो
शहीदों का बलिदान भूल कर तिरंगे की शान भूलकर
कवि,, मोहित नास्तिक